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सफेद पलाश White Palash

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                                                             Part 2

चमत्कारी पेड़, जिसका तंत्र विद्या में होता है उपयोग, एमपी में हैं केवल दो पेड़

सफेद फलाश को दुर्लभ माना जाता है, इसके कम पेड़ ही देखने को मिलते हैं, जानकार कहते हैं कि इसके मध्यप्रदेश में केवल दो पेड़ हैं


जबलपुर। सफेद पलाश को चमत्कारी पेड़ माना जाता है। यह पेड़ दुर्लभ प्रजाति का है। जानकारों की मानें तो इसके केवल दो पेड़ ही पूरे मध्यप्रदेश में हैं। इस पेड़  के विभिन्न हिस्सों का उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। इसका एक पेड़ मंडला जिले के सकरी गांव में पाया गया है। शासन ने इसे संरक्षित तो कर दिया है, लेकिन गाहे-बगाहे इसकी जड़ें और फूल चोरी हो रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि तंत्र-मंत्र के लिए इस पेड़ की जड़ों को खोदा जाता है।

मंडला शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बसे सकरी गांव में दुर्लभ प्रजाति का सफेद पलाश का पेड़ है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पेड़ करीब ढाई सौ साल पुराना है। इसके फूल और जड़ें औषधीय काम में आते हैं। एकलौता पेड़ होने के कारण ग्रामीण खुद ही इसे संरक्षित करते हैं। हालाकि शासन ने यहां संरक्षित प्रजाति होने का बोर्ड भी लगाया है। 

तंत्र क्रियाओं में जड़ और फूल

पेड़ को संरक्षित कर रहे भवेदी परिवार ने बताया कि जड़ो का उपयोग आदिवासी आम तौर पर तांत्रिक क्रियाओं में करते हैं। कई बार रात में इस पेड़ की जड़ों को खोदा जा चुका है। लोग इसके फूल भी ले जाते हैं। सम्मोहन व गोंड़ी तांत्रिक क्रियायों में इसकी जड़ों का उपयोग किया जाता है। सुरक्षा नहीं होने के कारण इस पेड़ के अस्तित्व पर संकट छाया हुआ है।

दुर्लभ प्रजाति का पेड़ 

इतिहासकार गिरजा शंकर अग्रवाल बताते हैं कि सफेद पलाश का पेड़ दुर्लभ माना जाता है। प्रदेश में केवल दो पेड़ हैं। एक पेड़ मंडला के सकरी गांव में है। यह काफी पुराना पेड़ है। जो संरक्षण के अभाव में असुरक्षित है।

ऐसे हो रही सुरक्षा

जिस खेत में यह पेड़ लगा है उसके मालिक ने यहां एक चबूतरा बनवा दिया है। पेड़ के नीचे शिवलिंग रखा गया है, जिसकी ग्रामीण पूजा करते हैं। ग्रामीणों ने बताया देव स्थान होने के कारण पेड़ सुरक्षित है। फिर भी गाहे-बगाहे चोरों की नजर इस दुर्लभ पेड़ पर रहती है 

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सफेद पलाश के पौधे और उनके अनोखे फायदे ! सफेद पलाश White Palash


सफेद पलाश के पौधे और उनके अनोखे फायदे The natural plants online nursery



Part 1


पलाश (पलास,छूल,परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू) एक वृक्ष है जिसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। इसके आकर्षक फूलो के कारण इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। पलाश का फूल उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प है और इसको 'भारतीय डाकतार विभाग' द्वारा डाक टिकट पर प्रकाशित कर सम्मानित किया जा चुका है।प्राचीन काल से ही होली के रंग इसके फूलो से तैयार किये जाते रहे है। भारत भर मे इसे जाना जाता है। एक "लता पलाश" भी होता है। लता पलाश दो प्रकार का होता है। एक तो लाल पुष्पो वाला और दूसरा सफेद पुष्पो वाला। लाल फूलो वाले पलाश का वैज्ञानिक नाम " ब्यूटिया मोनोस्पर्मा " है। सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेजो मे दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलो वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम " ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा " है जबकि लाल फूलो वाले को " ब्यूटिया सुपरबा " कहा जाता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है।
पलाश
Butea monosperma

बंगलौरभारत में
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत:Plantae
विभाग:मैग्नेलियोफाइटा
वर्ग:मैग्नोलियोप्सीडा
गण:Fabales
कुल:Fabaceae
वंश:Butea
जाति:B. monosperma
द्विपद नाम
Butea monosperma
(Lam.Taub.


अनुक्रम



परिचयसंपादित करे



पलास भारतबर्ष के सभी प्रदेशों और सभी स्थानों में पाया जाता है। पलास का वृक्ष मैदानों और जंगलों ही में नहीं, ४००० फुट ऊँची पहाड़ियों की चोटियों तक पर किसी न किसी रूप में अवश्य मिलता है। यह तीन रूपों में पाया जाता है—वृक्ष रूप में, क्षुप रूप में और लता रूप में। बगीचों में यह वृक्ष रूप में और जंगलों और पहाड़ों में अधिकतर क्षुप रूप में पाया जाता है। लता रूप में यह कम मिलता है। पत्ते, फूल और फल तीनों भेदों के समान ही होते हैं। वृक्ष बहुत ऊँचा नहीं होता, मझोले आकार का होता है। क्षुप झाड़ियों के रूप में अर्थात् एक स्थान पर पास पास बहुत से उगते हैं। पत्ते इसके गोल और बीच में कुछ नुकीले होते हैं जिनका रंग पीठ की ओर सफेद और सामने की ओर हरा होता है। पत्ते सीकों में निकलते हैं और एक में तीन तीन होते हैं। इसकी छाल मोटी और रेशेदार होती है। लकड़ी बड़ी टेढ़ी मेढ़ी होती है। कठिनाई से चार पाँच हाथ सीधी मिलती है। इसका फूल छोटा, अर्धचंद्राकार और गहरा लाल होता है। फूल को प्रायः टेसू कहते हैं और उसके गहरे लाल होने के कारण अन्य गहरी लाल वस्तुओं को 'लाल टेसू' कह देते हैं। फूल फागुन के अंत और चैत के आरंभ में लगते हैं। उस समय पत्ते तो सबके सब झड़ जाते हैं और पेड़ फूलों से लद जाता है जो देखने में बहुत ही भला मालूम होता है। फूल झड़ जाने पर चौड़ी चौ़ड़ी फलियाँ लगती है जिनमें गोल और चिपटे बीज होते हैं। फलियों को 'पलास पापड़ा' या 'पलास पापड़ी' और बीजों को 'पलास-बीज' कहते हैं।
पलास के पत्ते प्रायः पत्तल और दोने आदि के बनाने के काम आते हैं। राजस्थान और बंगाल में इनसे तंबाकू की बीड़ियाँ भी बनाते हैं। फूल और बीज ओषधिरूप में व्यवहृत होते हैं। वीज में पेट के कीड़े मारने का गुण विशेष रूप से है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई लिए हुए पीला रंगा भी निकलता है जिसका खासकर होली के अवसर पर व्यवहार किया जाता है। फली की बुकनी कर लेने से वह भी अबीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरों की दरारों में भरकर भीतर पानी आने की रोक की जाती है। जड़ की छाल से जो रेशा निकलता है उसकी रस्सियाँ बटी जाती हैं। दरी और कागज भी इससे बनाया जाता है। इसकी पतली डालियों को उबालकर एक प्रकार का कत्था तैयार किया जाता है जो कुछ घटिया होता है और बंगाल में अधिक खाया जाता है। मोटी डालियों और तनों को जलाकर कोयला तैयार करते हैं। छाल पर बछने लगाने से एक प्रकार का गोंद भी निकलता है जिसको 'चुनियाँ गोंद' या पलास का गोंद कहते हैं। वैद्यक में इसके फूल को स्वादु, कड़वा, गरम, कसैला, वातवर्धक शीतज, चरपरा, मलरोधक तृषा, दाह, पित्त कफ, रुधिरविकार, कुष्ठ और मूत्रकृच्छ का नाशक; फल को रूखा, हलका गरम, पाक में चरपरा, कफ, वात, उदररोग, कृमि, कुष्ठ, गुल्म, प्रमेह, बवासीर और शूल का नाशक; बीज को स्तिग्ध, चरपरा गरम, कफ और कृमि का नाशक और गोंद को मलरोधक, ग्रहणी, मुखरोग, खाँसी और पसीने को दूर करनेवाला लिखा है।
यह वृक्ष हिंदुओं के पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं। इसका उल्लेख वेदों तक में मिलता है। श्रोत्रसूत्रों में कई यज्ञपात्रों के इसी की लकड़ी से बनाने की विधि है। गृह्वासूत्र के अनुसार उपनयन के समय में ब्राह्मणकुमार को इसी की लकड़ी का दंड ग्रहण करने की विधि है। वसंत में इसका पत्रहीन पर लाल फूलों से लदा हुआ वृक्ष अत्यंत नेत्रसुखद होता है। संस्कृत और हिंदी के कवियों ने इस समय के इसके सौंदर्य पर कितनी ही उत्तम उत्तम कल्पनाएँ की हैं। इसका फूल अत्यंत सुंदर तो होता है पर उसमें गंध नहीं होते। इस विशेषता पर भी बहुत सी उक्तियाँ कही गई हैं।

उपयोगितासंपादित करें



होली के लिए रंग बनाने के अलावा इसके फूलों को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक बढ़ती है।पलाश की फलियां कृमिनाशक का काम तो करती ही है इसके उपयोग से बुढ़ापा भी दूर रहता है। पलाश फूल से स्नान करने से ताजगी महसूस होती है। पलाश फूल के पानी से स्नान करने से लू नहीं लगती तथा गर्मी का अहसास नहीं होता।.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इससे प्राप्त लकड़ी से दण्ड बनाकर द्विजों का यज्ञोपवीत संस्कार किया

पर्यायसंपादित करें



किंसुक, पर्ण, याज्ञिक, रक्तपुष्पक, क्षारश्रेष्ठ, वात-पोथ, ब्रह्मावृक्ष, ब्रह्मावृक्षक, ब्रह्मोपनेता, समिद्धर, करक, त्रिपत्रक, ब्रह्मपादप, पलाशक, त्रिपर्ण, रक्तपुष्प, पुतद्रु, काष्ठद्रु, बीजस्नेह, कृमिघ्न, वक्रपुष्पक, सुपर्णी, केसूदो,ब्रह्मकलश।







काली निर्गुंडी

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